औरत, आदमी और छत , भाग 5
भाग, 5
औरत आदमी और छत,
मिन्नी कागज कलम उठाकर शायद कोई काम कर रही थी। कुकर की सीटी सुन मैने प्लेटें लगा ली थी। किचन से बाहर आई तो देखा मिन्नी थी ही नहीं वहाँ पर, बाथरुम से पानी गिरने की आवाजें आ रही थी, शायद नहा रही हो। मिन्नी बाथरूम से आई तो हमने खाना शुरू किया ।
मिन्नी लंच में क्या खाया था आपने।
उस की नजरें मेरी तरफ़ उठ ग ई थी,गले का खाना निगल कर बोली,एक प्लेट बकवास के साथ एक कप चाय, अब ये मत पूछना कि ये चीजें कौनसे रैस्टोरैंट में मिलती हैं। क्योंकि ये सिवाय हमारे आफिस के और कहीं नहीं मिल सकती।
वाह, मुझे हँसी आ गई थी, पर वो मुस्कराई भी नही थी।
खाना खाकर मैने बर्तन सिंक में रखे ही थे कि उसनें कहा, साफ न ही करें तो अच्छा है वरना सुबह ब्रश करने को भी पानी नहीं मिलेगा। क्योंकि आज टंकी में पानी कम था
मिन्नी ने जमीन पर बिस्तर लगाना शुरू कर दिया था।
मिन्नी आप की उम्र क्या है।
क्यों, क्या हुआ।
फिर भी,
पच्चीस पूरे कर चुकी हूँ।
मेरी भी यही उम्र है,इसलिए मुझसे आप ,आप न कहा करो, नाम तुम्हें पता ही है घर वाले रज्जो कहते हैं। मैं तो तुम्हें मिन्नी ही कहूंगी।हम दोनों को एक ही कमरे में रहना है तो क्यों न हम बहनों की तरहं रहे।
नीरजा क्या हम दो अच्छे दोस्तों की तरहं नहीं रह सकते,
रिशतेदारी जरूरी है क्या।
उसका लहज़ा थोड़ा तलख़ था। मुझे थोड़ी हैरानी तो हुई थी।पर मैने उसे तुरंत सारी बोल दिया था।
एक ठंडी सी साँस ली थी मिन्नी ने, नहीं नहीं नीरजा तुमने कुछ गलत नहीं कहा बस मुझे ही पता नहीं क्यों रिश्तों के नाम से ही नफरत सी है। प्लीज मुझे माफ कर देना उसके दोनों हाथ जुड़ गए थे।
ये कैसी बातें कर रही हो मिन्नी मैं तो तुम्हारी सहेली हूँ। मैने उसके दोनो हाथ थाम लिए थे। उसकी आँखे नम हो उठी थी। जरूर कहीं कहीं कोई नासूर रिस रहा है इस लड़की के अन्दर, मैने मन ही मन सोचा।इस को वो संदेश अभी दूं या सुबह कहीं इस का मूड और न खराब हो जाए। फिर मुझे ख्याल आया।
मिन्नी,
हम्म,
चाय पियें,
पर तुम तो रात को चाय नही पीती।
पर तुम तो पीती हो, तुम्हारे साथ मैं भी पी लूंगी।
चाय के उबालों के साथ साथ मन में विचारों के भी उबाल आ रहे थे। कैसे कहूँ, क्या कहूँ। चाय के उबाल थम चुके थे,किन्तु मेरे मन के विचारों में और भी ज्यादा उबाल थे। मैं चाय लेकर रूम में आ गई थी।
अरे मिन्नी जब तुम शाम में गई थी न तो तुमसे मिलने कोई आया था।
मुझ से, कोई आफ़िस से था क्या।
नहीं कोई बर्जुग महिला थी, कह रही थी कि मिन्नी को बोलना, रीतिका ठीक है उसके बारे में कोई चिंता न करें।
मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ रही थी , वहाँ पर एक आपार सन्तोष था।
चाय गर्म थी मैने कप नीचे रख दिया था।
रीतिका के बारे में और कुछ नहीं बोला उन्होंने,
नहीं और तो कुछ नहीं बोला।
तुम नहीं जानना चाहोगी कि रीतिका कौन है।
कौन है रीतिका,
मेरी बेटी है।
त त त तु तुम्हारी बेटी। मुझे थोड़ी हैरानी तो हुई, परन्तु फिर उन बर्जुग आन्टी की बात याद आ गई, मिन्नी की रीतिका।
क्यों क्या मैं औरत नहीं हूँ।
अरे नहीं अभी तो तुम खुद एक बच्ची जैसी लगती हो।
छोड़ न मिन्नी ये बताओ कि रीतिका कहाँ रहती है।
मेरी एक ईसाई दोस्त है, उसने और उसकी मंमी ने छोटे बच्चों का एक हास्टल बनाया हुआ है ।उसी के पास रहती है मेरी बेटी।
अच्छा।
यह नहीं पूछोगी कि उस के पापा कहाँ है।
मैं सिहर ग ई थीअन्दर तक,मुझेउस की इस बात से किसी गलत अंदेशे का आभास हुआ था।
हूँ,गर तुम बताओगी तो जरूर सुनूगी।
नीरजा मुझे और तुम्हें एक कमरे में रहना है,तो कम से कम एक दूसरे के बारे में अच्छे से जान लेना चाहिए।
पर मुझे जानंने की कोई जरुरत या जल्दी नहीं है, बस मैं जितना मिन्नी को जानती हूँ,वह ही बहुत है।
पर जो मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ, वह भी मिन्नी की जिंदगी का एक जरुरी अध्याय है।
तो फिर किसी दिन बता देना मिन्नी।मेरे लिए वो जरूरी नहीं है डियर यकीन मानो।
ज़िंदगी की हकीकतों से दूर नहीं भागना चाहिए,, उन के बिल्कुल करीब रहना चाहिए। कई बार हकीकत बहुत कड़वी होती है,परन्तु वो भविष्य के लिए एक आईना होती है।
मैं वाकई गभींर हो उठी थी।
तुम्हारे साथ कुछ गलत हुआ है नीरजा।
मैने रीतिका के बाप से तलाक ले लिया है।
पर ।
मिन्नी इत़नी सुंदर और ज़हीन लड़की से कौन अलग होगा।
हाँ हो जाता है डियर, वो हो गया न मुझसे अलग अपनी बेटी से अलग। उसे हमसे ज्यादा अपनी शराब और अय्याशी प्यारी थी।बड़े घर का बिगडैल लड़का जिसे सिवाय अपनी स्वछंदता के किसी चीज से मोह नहीं था।स्वछंदता भी वो जो किसी की भावनाओं किसी के जीवन के ऊपर से होकर गुज़रे। रीतिका चार वर्ष की हो चुकी है जब मैं अलग हुई तो यह केवल दस महीने की थी। मैने सब से रिश्ता खत्म कर लिया है अब क्योंकि रिश्ते मात्र कागजी बन जाते हैं गर आप के अंदर एक दूसरे के लिए भावनाएँ न हो।
तुम्हारे माँ पापा मिन्नी?
माँ मर चुकी है, बाप और भाई पति से भी घटिया हैं, दोनों अव्वल दर्जे के शराबी। एक शादीशुदा बहन है वह भी इस समाज के अटपटे मोहरों की तरहं ।इसलिए नफरत करती हूँ, हर रिश्ते से।कमा रही हूँऔर हमारा दोनों माँ बेटी का गुजारा हो रहा है।
तुम्हारे पति ने रीतिका के लिए कुछ नहीं दिया।क्या कानून ने भी कुछ नहीं दिलवाया।
मेरे सास ससूर बहुत अच्छे थे, नीरजा, मेरी बेटी के नाम दो लाख रूपए की एफडी करवा दी थी उन्होंने, और पचास हजार रूपए मुझे दिए थे, ताकि मैं अपनी पढाई पूरी करके कोई नौकरी पकड़ सकूं। मैने बी एड भी किया है । कुछ दिन प्राईवेट स्कूल में भी पढ़ाया है पर वहाँ इतना भी नहीं मिलता की गुज़र बसर आराम से हो सके और काम यानि शाम तक बैठना पड़ता।
सही कह रही हो मिन्नी प्राईवेट स्कूल तो जैसे दूकाने बन कर रह ग ई हैं।
मुझे लिखना पढ़ना बचपन से ही अच्छा लगता है, इसलिए जर्नलिज्म किया था।अब ये काम भी गया है रोजी रोटी इसी से चल रही है।इस सांध्य दैनिक के लिए एडिटर का काम करती हूँ और एक दैनिक अखबार के लिए रिपोटिंग करती हूँ।।
मैं जैसे जड़ हो गई थी,इत़नी सुंदर और मासूम लड़की का इतिहास इतना कड़वा हो सकता है। कोई सोच भी नहीं सकता था। इसकी उम्र में तो लड़कियाँ शादी के सपने सजोती हैं और इस के उपर तलाकशुदा का ठप्पा।
सो जाओ मिन्नी सुबह उठना भी है, मैने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया था।
तुम सो जाओ नीरजा मुझे अभी नींद नहीं आएगी।
मैने उसे मजबूर नहीं किया था।
उसी के बराबर फर्श फर बिछे बिस्तर में सो ग ई थी मै, मेरा दिमाग मेरे दिल के सवालों के जवाब नहीं दे पा रहा था। कितनी कठोर कहानी थी उसकी ,उसका बाप और भाई भी उफ़्फ़, अविश्वसनीय लग रहा था, कि सी फिल्मी कहानी जैसे। किन्तु मिन्नी की सच्चाई और मासुमियत पहले ही दिन अपने बारे में सब बता गई, लोग तो अपनी बातों पर परदा डाल लेते हैं।
तभी मिन्नी उठी थी,अलमारी से एक गोली निकाली और किचन में जाकर पानी से गटक ली।पता नहीं नींद की गोली थी या सिरदर्द की।।
विचारों के घेरे में खोये खोये पता नहीं कब नींद आ गई। सुबह खटर पटर से ही आँख खुली थी।मिन्नी कमरे को व्यवस्थित कर रही थी। मैं हैरान रह ग ई।
।मुझे जगा लिया होता मिन्नी।
गुडमार्निंग नीरजा।
रात की किसी बात कि कोई निशान उसके चेहरे पर नहीं था बल्कि वह तो एक सैनिक सी अपने दैनिक कामों के लिए तत्पर थी।
अरे ऐसा कुछ नहीं है,सुबह आँख खुली तो सोचा पानी भर लूं वरना दोनों को बिना नहाये जाना पड़ेगा।
यहाँ पानी की दिक्कत है क्या मिन्नी।
अरे भ ई है भी और नहीं भी।यहाँ जो ,वॉर्डनमहोदया को खुश रखता है,उसका तो पानी का टंकी भरा रहेगा। दरअसल सभी कमरों में सप्लाई उन्हीं की टंकी से होती है। हर टंकी पर कमरा नम्बर लिखा होता है।
वाह भ ई खूब प्रबंधन है यहाँ का।पर मिन्नी वॉर्डन तो तुम से काफी मीठा बोलती है,फिर यहाँ पानी की कमी क्यों।
क्रमशः
लेखिका, ललिताविम्मी।
भिवानी , हरियाणा।
Aliya khan
07-Sep-2021 12:00 PM
लाजबाब
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Natash
03-Jun-2021 09:08 AM
बहतरीन कहानी ,
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Lalita Vimee
03-Jun-2021 05:35 PM
बहुत शुक्रिया जी🙏🙏
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